कार्यकाल के आखिरी दिन CJI चंद्रचूड़ देंगे एएमयू के अल्पसंख्यक मामले पर अंतिम फैसला

कार्यकाल के आखिरी दिन CJI चंद्रचूड़ देंगे एएमयू के अल्पसंख्यक मामले पर अंतिम फैसला, पूरे देश की नजर CJI पर

क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है या नहीं?

Aligarh Muslim University Hearing: भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ का उनके कार्यकाल में आज आखिरी दिन है, और इस आखिरी दिन पर उनके कंधों पर जिम्मेदारी उतनी ही बड़ी है जितना की उनका यह पद। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ आज एक विवाद पद कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाने जा रही है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर मामला है क्या जिस पर पूरे देश की नजर टिकी है।

कौन कौन है पीठ में शामिल

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ जिन में संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जी पारदीवाला, दीपंकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल है, ये सभी मिलकर फैसला सुनाएंगे की क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है या नहीं? आपको बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।

क्या है पूरा मामला

1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 का हवाला दिया और निष्कर्ष निकला कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा नहीं किया गया था, जो संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षणिक प्रतिष्ठानों के रूप में वर्गीकृत होने के लिए आवश्यक है। 1981 में एमयू अधिनियम में संशोधन करके दावा किया गया कि विश्वविद्यालय भारत के मुसलमानो द्वारा स्थापित किया गया है।

2005 में एएमयू ने अल्पसंख्यक दर्जे का हवाला देते हुए मुस्लिम छात्रों के लिए स्नातक चिकित्सा सीटों में से 50% सीट आरक्षित कर दी। 2019 में इस मामले में दोबारा विचार करने के लिए इसे 7 न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया। केंद्र सरकार ने 2016 में अपील वापस ले ली थी लेकिन अब उसका तर्क है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को कभी अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला उसने कहा कि अब 1920 में शाही कानून के तहत एएमयू की स्थापना की गई थी तो उसने अपना धार्मिक दर्ज को दिया था, और तब से मुस्लिम अल्पसंख्यक इसका प्रबंध नहीं कर रहें हैं।

अगर 1920 में स्थापित एमयू अपना अल्पसंख्यक दर्जा खो देता तो उसे अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय की तरह छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए आरक्षण नीतियां लागू करनी होगी हालांकि अगर यह दर्जा बरकरार रखना है तो विश्वविद्यालय मुस्लिम छात्रों के लिए 50% तक आरक्षण दे सकते हैं। वर्तमान में एएमयू राज्य आरक्षण नीतियों का पालन नहीं करता है बल्कि इसकी एक आंतरिक प्रणाली है जिसके तहत इसके संबंध स्कूलों या कॉलेज के छात्रों के लिए 50% सिम आरक्षित करती हैं।